My Poem

1. पुस्तकों  की  आवाज 

पुस्तकें, हाँ वही पुस्तकें, फटी पुरानी 
जिसने सवांरा है कईयों के जिंदगी को,
और रहेगा जब तक,
आगे भी सवांरता रहेगा,
ऐसी है उम्मीद,

एक शांत कमरे में,
मेज पर पड़ी पुस्तकों के ढेर,
ना जाने जैसे कब से,
 गुहार लगा रही हो,
 अपनी विनम्र अवस्था में,

कि कोई अपना लो मुझे,
बदल दूंगा जिंदगी तेरी,
अक्सर बदली है मैंने,
कईयों के जिंदगी को,
करो विश्वास मुझ पर,

मैंने बनाया है कईयों को महान,
तुम ले सकते हो गाँधी और कलाम,
जिसने बनाया देश को महान,
और वही आंबेडकर को बनाया,
जिसने रचा संविधान |

~सौरव

2.दो पल जिंदगी के 

मुझे यकिन है, रहेंगे सब यहीं,
बसंत में झूमता हुआ वृक्ष  की टहनियाँ,
और उस पर चक्कर लगाते गिलहरी,
और उसका पूरा परिवार,
और सुनाई देता रहेगा हमें,
पक्षियों के चहचहाने की आवाज,

जब तक रहेगी ये वृक्ष,
जब तक रहेगी ये गिलहरियाँ,
जब तक रहेंगे हम,
जब तक रहोगे तुम,
रहेगा जब तक जीवन में जीवन,

मिलते-बिछड़ते रहेंगे,
यहाँ हजारों-हजार लोग,
मिलते-बिछड़ते रहेंगे,
पतियाँ पेड़ो से,
मिलते-बिछड़ते रहेंगे,
नदियाँ अपने किनारों से,

मिलते-बिछड़ते रहेंगे,
हम अपने परिवारों से,
और अंततः पहुँच जाएँगे,
हम अपने-अपने धाम,
जिस प्रकार समंदर समां लेती है,
नदियाँ को खुद में,
ये दो पल है जिंदगी के |

~सौरव   

3.आवारा 

अक्सर सुना है मैंने,
रात के सन्नाटे में ,
वो चूं और सन्न की आवाज,
गरीब दरवाजे से आते हुए,

जहाँ नए स्वपन संजोए ,
उन्नीस वर्ष का माँ-बाप का लाडला,
अपनी मेज पर पड़ी पुस्तक,
 और आँखों में लिए स्वपन,

अंधेर रतिया में भी खुश था वो,
अपनी चहार दिवारी के साथ,
पिता का शांत स्वाभाव,
 बहोत कुछ कह जाता था उसे,

अभी भी वैसा ही  है वो,
हलचल कुछ भी,
 नजर आता  नही  उसमे,
बस लिए नज़ारे स्वपन के,

सब कुछ है पर,
कुछ भी नही है जनाता उसको,
क्या होगा कुछ पता नही,
पत्ता जो बिछड़ गया पेड़ से,
कुछ कहा नही जा सकता उसका |

~सौरव 
 
   

Comments

Rakesh said…
poem no 1 is best bro

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